________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९१ ज्ञाने नासे मान ज्ञानथी प्रगटे उक्ति; सत्यासत्य जणाय छे ने ज्ञाने तत्त्व पमाय छे, बुद्धिसागर ज्ञानथी तो परमानंद मुहाय छे. ॥२॥ ज्ञाने होवे सुख ज्ञानथी साचुं परखे, ज्ञाने आतमदेव ज्ञानथी हृदये हरखे; ज्ञाने कर्म विनाश ज्ञानथी स्वरूपभोगी, ज्ञाने तप जप ध्यान ज्ञानथी अंतर्योगी; ज्ञाने शक्ति आत्मनी सहु प्रगटती क्षणवारमां, ज्ञानवण नहीं मुक्ति भव्यो समजशो संसारमां. सम्यग आतमज्ञान विना कबु होय न शांति, आतमज्ञान विना छे जगमां ज्यां त्यां भ्रांति; ज्ञानविना नहि ग्रन्थ ग्रन्थ वण तत्त्व न पावे, ज्ञाने उच्च कहाय ज्ञानवण नीच कहावे; प्रगटे ज्ञानप्रकाश तो घट सर्व शक्ति संपजे, आत्मज्ञानी विश्व मोटो सत्य इश्वरने यजे. ॥४॥ आतमज्ञाने राग टळे छे द्वेषज नासे, आतमज्ञाने नवतत्त्वादिक सम्यग् भासे; आत्मज्ञान त्यां ध्यान खरु छे ज्ञानी गावे, पण कोइ विरला आत्मज्ञानने दील पचावे; अनंत शक्ति आत्मनी तो आत्मज्ञाने जागती. अशुद्ध परिणति आत्मनी तो आत्मज्ञाने भागती. ॥५॥ आत्मज्ञानथी भाव चरणमां लय तो लागे, रंगातो रागे नहीं आतमज्ञानी जागे; आत्मानुभवरंगे सुखडा सर्व विकाशे.
For Private And Personal Use Only