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क्षमामहत्ता.
छप्पयछदै. क्षमा सकल गुणखाण क्षमाथी क्रोध समातो; क्षमा दयानुं मूळ क्षमाथी सन्त कहातो, क्षमा मुनिमां वेश क्षमाथी जगमां शोभे. क्षमा असि धरी हस्त वैरने क्षणमां थोभे, क्षमा विनानुं मानवी अरे शोभतुं ते नहीं कदी; बुद्धिसागर जल विना जेम शोभती जेवी नदी. ॥१॥ क्षमा विना शो सन्त क्षमावण मोटो शानो, क्षमाविना शी नार क्षमागुण सत्य मजानो; क्षमाविना शो शिप्य रीसथी जे दिल भरियो. भवसागरने क्षमाविना नहि को जन तरियो, क्षमा हृदयमा जेहने छे तेज मोटो जाणीए; बुद्धिसागर सन्तपुरुषो क्षमा हृदयमा आणीए. ॥२॥ तप जप करणी फोक क्षमावण ग्रन्थे दाखी, क्रोध कर्याथी संयम गुणनी लघुता भाखी; धर्म क्षमा छे सत्य राचशो तेमां भव्यो. दीलमां क्षमा उतारी करशो सहु कर्त्तव्यो; धनसत्ताना तोरथी अहो क्षमा हृदयथी जाय छे सत्समागम ज्ञानथी अहो क्षमा हृदय प्रगटाय छे. ॥३॥ दयातणो ज्यां वास क्षमा त्यां स्हेजे आवे, दया दिल नहि लेश क्षमा ते क्यांथी पावे; नहि ज्यां चेतन ज्ञान क्षमा त्यां क्याथी रहेवे. ज्ञानी गुणभंडार क्षमानां वचनो कहेवे,
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