________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७८ गुणियल विनये होय, विनयथी पुत्रो सारा; विनये शिष्यो बेश, विनय वण होय नठारा; विनये स्थिरता वास, विनयथी होवे मोटा, विनय ज्ञान- मूळ, विनय वण होवे गोटा. विनये भक्ति थाय छे, बहु विनये मान मळे बहु विनये माणस शोभतो अहो विनय वर्णन शुं कहुं ? ॥ ३ ॥ विनय विना शी जात भातने जीवन जगमां; जगमां ते धन्य धन्य विनय पेठो रग रगमां; विनये मुक्ति होय विनयथी युक्ति सूजे, विनये सज्जनसंग विनयथी क्षणमां बुझे, वशीकरण महा मंत्र छेहि विनय जगमां जाणजो, समजीने अहो भव्य लोको विनय मनमां आणजो. ॥ ४ ॥ विनये गुरुनी आण, विनयथी गुरुनी सेवा; विनये जिनवर थाय विनय छे मीठा मेवा; विनये तत्त्वप्रकाश विनयथी मद्धि पावे, विनयमंत्रनी सेव थकी सहु पासे आवे; विनय विना जन ढोर छ, विनयमां बहु जोर छ, भव्य लोको जाणजो अहो विनयमहिमा ओर छे. ॥५॥ विनये निर्मळ वाक् विनय वण वाणी गंदी; विनय विना जन मूर्ख विनय वण छे स्वच्छंदी; विनये पग पग मान विनय वण छे धूळधाणी; विनय विनानुं वदन जाण जेवी घाणी. विनये सहु राजी रहे वहु विनये सारा सहु कहे, बुद्धिसागर विनयिजनने जगत्मां सहुजन चहे. ॥६॥
For Private And Personal Use Only