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नवपद ऋद्धि घट दाखी, ज्यां सूत्रसिद्धान्तो साखी लेजो उरमांहि उतारी
नमुं. १
मयणासुंदरी श्रीपाल, पाम्या छे मंगलमाल, आम्बील तपने दील धारी
निश्वयव्यवहारे दाख्यां गुणगुणीविभागे भाख्यां, च निक्षेपा अवतारी
अन्तरनी शक्ति आपे, परमातम पदमां थापे, नव पदनी छे बलीहारी पदपिंडस्थादिक भेदे, नव पद ध्याने सुख वेदे, सहु कर्म कलंक विडारी,
नव पदनुं ध्यान धरीजे, आतमनी लक्ष्मी वरीजे, पामो भव जलधि पारी
नव पदनो साचो यंत्र, नव पदनो ए महा मंत्र
ए नव पद मंगलकारी
स्मरो नवपद श्वासोश्वासे, सिद्धि ऋद्धि-घटवासे बुद्धिसागर अवधारी
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नमुं. २
नमुं. ३
नपुं. ४
नमुं. ५
नमुं. ६
नमुं. ७
नमुं. ८
मनहरछंद.
मन माने ते खावो पीवो भाइ दुनीआमां, जेवी जेवी क्रिया तेवो कर्मनो तो बन्ध छे, मन मकलाइ अरे फुलण फजेती करी, अन्तरना ज्ञानविन देखता तो अन्ध छे. चेतननो बोध रोध करे धन घातीयांनो, चेतनप्रकाशथकी सुगति पमाय छे. धीनिधि कछे एम सत्य वात जाणवाथी, अलख अलख मुख योगियो तो गाय छे, ॥ १ ॥