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म्हारु अने हारु एम भेद पाडी भूल करे चेतनना बोधविण जीवडा कूटाय छे, चार गतिमांहि भमी ममीने तो दुःख लह्यां, अन्तरनी भूलथकी भवमां भमाय छे. चेतनना बोधविण चेतन तो जड जेवो, चेतनना बोधविण चेतन चूकाय छे. धीनिधि कहेछ एम चेतजे चतुरजन, घडी सवालाखनीतो जोतामांहि जाय छे. ॥२॥
मनहरछंद. करीने विचार भाइ दुनीआमां देखी लेजे, गाडी वाडी लाडी सहु मायानी जंझाळ छे, धनपति नरपति सुरपति मुख सहु अज्ञानथी मानी लेइ मोह्या जीव बाल छे. शोध कर बोध कर चित्तमां चतुर जन प्रमदाना पाशमांहि शाने जकडाय छे. जाग जाग जीव जरा ज्ञानथी विचारी जोने नित्य एक चेतन छे सत्य समजाय छे. ॥१॥ जरूर जरूर जीव जोने जरा अन्तरमा अन्तरना ज्ञानथकी दोष सहु जाय छे. शाताशातावेदनीने समभाव वेदी लेजे अन्तरना ज्ञानथकी समभाव थाय छे. श्वास ने उच्छ्वासमांहि जीवन बहे छे जीव लोक कहे मोटो तने न्हानो थइ जाय छे. धीनिधि कहे छे एम चेतन तुं चेती लेजे जिनवाणी गुणखाणी शरण सदाय छे. ॥२॥
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