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जीवने उपदेश.
मनहरछंद:
अरे जीव जरा चित्तमांहि तो विचारी जोने जनन मरण दुःख शाने तेह थाय छे. कर्म छे कारण तेनुं कर्मनो विनाश कर कर्मai aies रागद्वेपथकी आय छे. राग अने द्वेषभाव कर्मना विनाश थकी नाश द्रव्यकर्मतणो पलकमां थाय छे. thani मरण जेनुं जीवता ते जगमोहि, जाग जाग दीलमांहि चतुर चूकाय छे. अन्तरना ज्ञान माटे गुरुनुं शरण कर, गुरुगम सेवनाथी सत्य तो जणाय छे. ज्ञानी ध्यानी मुनि गुरु शरण शरण कर चेतन स्वरूप मुनिकरुणाभी पाय छे. जडमां जगत् सहु जकडाणुं जाणी लेइ, सुखनी तो आश एक चेतनमां धारजे. धनिधि कहे छे एम शिवसुख पामवाने, राग अने द्वेष दोय चित्तमांथी वारजे.
मनहरछंद.
चेतन चतुर घेत आयु वही जाय अरे, मायाथी मस्तान थइ शाने भटकाय छे. बालने युवानवय चाली जाय चेत चित्त, बानी उन्नति स्थिर रही न रहाय छे. संयोगथी मळ्यो सह कुटुम्ब कबीलो देख, म्हारु म्हारु मानी मूढ मन मकलाय छे.
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