________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जडना संबंध थकी न्यारो छे चेतन तुंहि, अज अविनाशी एकरूप तुं कहाय छे. ॥॥ निरञ्जन निराकार निर्मल परम ब्रह्म, सिद्ध बुद्ध हंस तुंहि आनन्दनुं स्थान छे. योग लेश्या मन वाणी देह थकी न्यारो तुहि, देहव्यापि चेतननुं ज्ञान ते प्रमाण छे. असंख्यप्रदेशघन ज्ञानमय चेतन छे, तुंहि तुहि रटनामां आनन्द अपार छे. अकल प्रभुनुं रूप ज्ञानथी कळाय अहो, धीनिधि परम ब्रह्म नित्य निराकार छे.
मनहरछंद. जाणवानुं बहु एक आदेय चेतनरूप, जीवमां अनन्तगुण ज्ञानथी समाय छे जिनवाणी गुणखाणी विवेकथी दलिआणी, शुद्ध एक चेतनने योगियो हि ध्याय छ; सत्ताथी समानसिद्ध चेतनने ध्याइएज, व्यक्तिरुप थावे गुण सत्ताना तो ध्यानथी; शुद्धध्यानउपयोगे शुद्ध तो चेतन थाय, स्थिरचित्त ध्यान कर गुरुगम ज्ञानथी. ॥१॥ लटपट खटपट झटपट तजी जीव, शुद्ध बुद्ध रूप हारुं स्थिरचित्त ध्यावजे; फरी फरी नहि मले समय सुजाण अरे, सत्ताए रहेली शुद्ध बुद्धताने पावजे; अशुद्ध चेतन तुहि चार गति रूप छेज,
For Private And Personal Use Only