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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४ ती शुद्धताथी भेद भाव जाय छे; सिद्धांतनो सार सत्य समज चेतन एज धीनिधि चेतन प्रभु कोइ जन पाय छे. मनहरछंद. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ जननी समान सहु ललनाने मानी लेजे, परधन पत्थर समान चित्त धारजे; पोताना चेतन सम सहु जीव गणी लेइ, मन वच कायाथकी कोइने न मारजे; वंदन निन्दक पर चित्तनी समानताज, अशुभ विचार थकी चेतनने वारजे; खेली निजरूपमांहि शूरवीर थइ जीव, ratfarकी झट पोताने तुं तार जे. लप छप गप छप तजीने चेतन हवे, स्थिर योग थकी एक आतमने ध्यावजे; परमां प्रवेश थकी चित्तडुं चंचल थायः माटे हितशिख हवे ध्यानमांहि लावजे; भूली सहु दुनीयानुं भान एक ध्यान थकी, साध्यमांहि सुरतानी लीनता लगाडजे; धनिधि कहे छे शूरवीर थइ जीव हवे, विजय विजय वाद्य वेगथी वगाडजे. For Private And Personal Use Only मनहर छंद. दिनमणि ज्ञानमणि स्पर्शमाणे जगधणी, दुःखहर सुखकर आनंद निधान छे; अलख खलक मांहि साच अन्यकाच सहु, 'चेतनानुभव सत्य अमृतनुं पान छे; ॥ १ ॥ ॥ २ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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