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१७३ समय हितोपदेश.
गझल. गरज छे सर्वथी वहली, फरज छे सर्वथी पहेली सुधारो सर्वथी सारो, कुधारो सर्वथी खारो. ॥१॥ भलामां सत्यना पन्थो, भलामां सत्य छे ग्रन्थो; बुरामां दुजेनो दोडे, प्रभुमां भक्त मन जोडे. ॥२॥ गुरुनी भक्तिमां शक्ति, अखंडानंदनी व्यक्ति । समयना जाण छे मोटा, समयना अज्ञ छे छोटा. ॥३॥ दयानी सत्य छे करणी, दया छे मोक्ष निःसरणी; समनशो ज्ञानथी मुक्ति, समजशो ज्ञानथी युक्ति. ॥४॥ दया छे ज्ञानीनी हाथे, क्रिया छ ज्ञानिनी साथे; दयामां चित्त रंगाशे, तदातो मुक्ति झट थाशे. ॥५॥ दया छे निर्मली गंगा, दयाथी दील छे चंगा; दयाथी देवता पासे, दयाथी संकटो नासे. ॥१॥ परखजो धर्मनुं नाणुं, परखजो धर्मनु टाणुं; विचार्या बीन ना बोलो, समय वण तत्त्व ना खोलो. ॥७॥ प्रभुने ज्ञानथी परखो, हृदयमां हेतथी हरखो; बुद्धद्यब्धि सन्तनी सेवा, अमारे शुद्ध ए मेवा.
चित्तमां चेत.
गझल. जीवलडा चित्तमा चेतो, झपाटो काल तो देतो; अरे नु जागने घटमां, पडे शुं भव्य खटपटमां. ॥१॥ जुए शुं मानवी भोला, फरे छे मृत्युना डोळा;
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