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विचारो वात आ वहेली, वखत तो आवशे छेल्ली. ॥२॥ जीवलडा चित्तमां जागो, कपटना फन्दने त्यागो; भणीने भूल जो थाशे, तदा तो खूब पस्ताशे. ॥३॥ जगत्मां दुःख छे भारी, जगत् छे दुःखनी क्यारी; विचारी धर्मने धारो, फोगट नहि जन्मने हारो. ॥ ४ ॥ करे शुं कल्पना कोटी, विषयनी वात छे छोटी; जगत्मां संपथी चालो, जगत्मां संपथी म्हालो. ॥५॥ खरे जीव जाय छे आयु, खबर नहि वाय शो वायु; विचारी चेती ले व्हाला, करे शुं आल पंपाला. ॥६॥ चलक तुं चेतन ज्ञानी, निरंजन नित्य सुख खाणी; बुद्धयब्धि धारजे सोऽहं, हृदयमां भावजे कोऽहं. ॥७॥
कामविषयस्वरूप.
गजल.
विषयनी वात मूंडी छे, विषयनी वात कुडी छे, विषयनो वेग छे तेजी, विषयथी लाज नहीं छेजी. ॥१॥ विषयमां चित्त९ दोडे, चढेलो स्वार ज्युं घोडे, विषयथी चित्त भटके छे, विपयथी चित्त सटके छे. ॥२॥ विषयथी जूठनी वाणी, विषयथी दोपनी खाणी, विषयथी पाप आवे छे, विषयथी धर्म जावे छे. ॥३॥ विषय छे दुःखकर हस्ति, करे छे खूब ते मस्ति, विषय छे विषना प्याला, विषयथी सर्व छे वाला. ॥ ४ ॥ विषयमां दुःखनी श्रेणि, विषयमां दुःखनी रहेणी, विषयथी थाय धूळ धाणी, मळे नहि अन्नने पाणी. ॥५॥
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