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॥७॥
रुपाने तजींने ग्रहे कोण छीपो; स्वमिजनोने वडी स्हाय आपो, कुसंपो तणां मूळने शिघ्र कापो. लडो ना कदी साधुनी साथ द्वेषे, वहो ना कदा आयु ने वर क्लेशे; सुधारा मिषे ना करोरे कुधारा, तजे धर्मने वेष ते ना सुधारा. महा वीरनां वाक्य सूत्रानुसारे, दीले सहहे आतमा तेज तारे; कलिकालना दोषथी धर्मभ्रष्टो, लहे दुर्गतिमां बहु दुःख कष्टो. कुविधा हवाथी सुविद्या टळे छे, सुविद्या थकी मोह माया गळे छे; सुश्रद्धाथकी कर्मनो अन्त आवे, सुश्रद्धाथकी वीरनां वाक्य भावे. कदी ना करो धर्ममां व्हेम खोटो, जिनेन्द्रे कयो धर्म छे सत्य मोटो; खरी टेकथी धर्मने दील धारो, अदेखाइ निन्दा अने झेर वारो. भणो भावथी धर्मग्रन्थो विचारी, गुरुज्ञानथी सन्मति तो थनारी, कहे धीनिधि सत्य ए छे सुधारा, विवेके विचारो भो धारनारा.
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