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संस्कार दोषी पडे छ आकृतिवत् प्रतिबिंब दर्पणमां, शोध्याथी सत्य जडे छे रे. सद्गुण. ॥ ४ ॥ गुणनी छे आदिने दोषो अनादि, जेवो विचार दील तेवं; सद्गुणदृष्टिथी गुणो खीले छ, सत्य विचाराने लेवू रे. सद्गुण. ॥५॥ जेवं मनन तेवी धारणा थाय छे, स्मृति छे धारणाथी तेवी; विषयवासना स्मृतिनुं कारण, प्रथमज धारणा लेवी रे. सद्गुण. ॥ ६ ॥ दृष्टि समानज विचारो तो थाय छे, सद्गुणदृष्टि भली छे सद्गुणदृष्टिथी गुणोनी भावना, दृष्टि सज्जनने मळी छ रे. सद्गुण. ॥ ७॥ जेवो अभ्यास तेवी दृष्टि खीले छे, जोशो हृदयमां विचारी; गुणोनी भावना भाव वधार, अभ्यास भावना सारी रे. सद्गुण. ॥ ८ ॥ खोळामां ललना ने पुत्री के बेसे, दृष्टिथी भावनाज न्यारी दृष्टिनी भावना पार्टी पडे छे, समजो हृदय नरनारी रे. सदगुण. ॥ ९ ॥ सदगुण भावना दृष्टि खीलावो, उच्च जीवन अधिकारी
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