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जगनत्मां हूं जगतमां नहीं, अपेक्षा ज्ञानमा ए रही. ॥१९॥ जगतमां जीवयुं ज्ञान, जगत्मां जागवू भाने, बुद्धयब्धि ज्ञानथी बोले, नहि को ज्ञाननी तोले. ॥ २० ॥
प्रभुप्रमखुमारीना उद्गार.
गजल.
समजजो प्रमी भक्ति, समजजो प्रेमी शक्ति समजजो प्रेमथी सेवा, समजजो प्रेमथी मेवा. ॥१॥ प्रभुना प्रेमथी शान्ति, प्रभुना प्रेमथी कान्ति: प्रभुमा प्रेम तो करशु, प्रभुना प्रेमथी तरशु. ॥ २ ॥ प्रभुने प्रेमथी मळवू, प्रभुमा प्रेमथी हळकुं; प्रभुना प्रेमथी जोगी, प्रभुमा प्रेमथी भोगी. प्रभुमा प्रेमथी राचु, प्रभुमा प्रेमथी साचु; प्रभुमा प्रेम जो जागे, तदातो दोप सहु भाग. ॥ ४ ॥ प्रभुमां प्रेमथी मुखो, प्रभुमां प्रेम वण दुःखो; प्रभुने जाणतां प्रेमी, प्रभुने जाणतां क्षेमी. प्रभुमा प्रेमी रमवं, प्रभुमा मथी भमg; प्रभुने पूजीए प्रेम, प्रभुने पूजीए नमे. पभुमां प्रेमी सिद्धि, प्रभुमा प्रेमी कद्धि; प्रभु छ सर्व तीर्थेशो, पूजनथी जाय छे क्लेशो. ॥ ७ ॥ प्रभु आ आतमा साचो, सदा त्यां मथी राचो; प्रभुनी सत्य छे यारी, समज तुं दीलमां धारी. ॥८॥ प्रभु सम सर्वने भालु, तदा छे दील अजवाळु; प्रभु सम सर्वने जाणुं, दिले जब संग्रहनय आणुं. ॥ ९ ॥
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