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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १,४ जगत्ने जाणता योगी, जगत्मां मृढ छे भोगी, जगत्मां मोहथी मारु, जगतमां मोहथी तारु. ॥७॥ जगतमां धर्म छे साचा, जगतमा मोह छे काचो, जगत्मां मोहथी फेरा, जगतमां मोह अन्धेरा. ॥८॥ जगत्मां मूर्ख छे मेला, जगत्मां मृढ छे घेला, जगत्मां ज्ञान ने गांडा, जगतमा धर्मि ने बांडा. ॥ ९ ॥ जगतना प्रेममां फांसी, जगन्ना प्रेममा हामी, अगत्ना क्लेशथी काळु, जगतने ज्ञानधी माळ. ॥१० ।। जगत्मा झरना प्याला, जगतमां उघना बाला. जगत्मां जागता सुखी, जगतमा उंचता दुःखी, ॥ ११ ॥ जगत्मा प्रेमना मळा, जगत्मां पुण्यनी वेळा, जगत्मां सत्यना नोटा, जगतमा मोहना गोटा. ॥१२॥ जगत्मां धर्मना ग्रंथो, जगतमां मोक्षना पंथो, जगतमां बंध ने मुक्ति, जगन्मां ज्ञानथी युक्ति. ॥१३॥ जगतमां भूख हे भुंडी, जगतमां आश छे लूंडी, जगन्ना भर्म ,डा छे, जगतना भर्म कृडा छे. ॥५४॥ जगतमा सन्तनी सेवा, जगतमां सत्य छे देवा, जगतमां भर्म छे छानो, जगत्मां भर्म छे मानो. ॥ १५ ॥ जगतमां पुण्य ने पापो, जगत्मां धर्मनी छापो, जगत्ने जाणवु न्यारू, जगतने जाणवू घारू. ॥ १६ ॥ जगत्मा साच हे सारू, जगत्मां भर्म अंधार, जगतमां आत्म छे दीवो, जगतमा ज्ञानथी जीवो. ॥ १७ ॥ जगत्मां रंक ने राजा, जगतमां पीर ने ग्वाजा, जगन्ने जाणतां प्यास, जगतने जाणतां ग्वारु. ॥१८ ।। जगतमां ज्ञानथो रहे, जगतमां दुःख सह स्हेवू, For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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