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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पापथकी पुण्य ज छे सारं शुभ व्यवहारे, पुण्यथकी संवर छे सारो आतम तारे; प्रसन्नचंद्र राजर्षि पेठे मनथी पापो, अशुभ विचारो प्रगट थाय ते क्षणमां कापो; मनसंयमथी कर्मनी तो वर्गणा नहि आवती, ध्यान किरिया अशुभ कर्मों शुभपणे बदलावती ॥४॥ शुद्ध विचारो शुद्ध ध्यान छे उद्यम मोटो, शुद्ध विचारो करतां आवे कदी न तोटो; दीलथी शुद्ध विचारो एहिज साची किरिया, शुद्ध विचारो क्रिया करिने अनंत तरीया; मन वाणी काया थकी अहो शुभोद्यम सुखकार छे, धर्म यत्ने कर्म नासे जगतमां जयकार छे. ॥५॥ आत्मस्वरुपनी किरिया उद्यम साचो जाणो, रमणता किरिया उद्यम पर्याय पिछाणो; पिंडस्थादिकध्याने उद्यम प्रेमे करीए, कर्मदलिकनो नाश करीने शिवपुर वरीए; अंतरना उपयोगमां झट रमणता उद्यम खरो, परम महोदय मार्ग जाणी भव्य जीवो अनुसरो. ॥ ६ ॥ जेने जेवो उद्यम फळ तो तेवू मळशे, समजीने सुपात्र जीवशिव पन्थे वळशे; मनुष्यक्षेत्रमा शिव वस्तु मानव व्यापारी, उद्यम करवो सत्य भव्य आलसने वारी; आत्मव्यक्ति प्राप्त करवा, उद्यम अनुपम एक छे, बुद्धिसागर हृदय दिनमणि ज्ञानकारण छेक छे. ॥७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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