________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२००
ध्यान.
छप्पयछंद. चिदानंद भरपूर ध्यानथी चेतन भासे,
आर्त द्वितीय रौद्र ध्यान तो क्षणमां नासे; क्रिया स्वरुपी ध्यान हृदयमा ज्ञाने जागे. मोहादिक सहु दोष हृदयथी क्षणमा भागे, ध्याने अनुभव ज्ञान छे ने ध्याने केवलज्ञान छ ध्यान विना नहि मुक्ति भव्यो समजशो सुखखाण छे. १ ध्याने नासे मान ध्यानथी प्रगटे मुक्ति, दर्शन ज्ञान चरण सद्गुणनी ध्याने युक्ति; ध्याने विषय विनाश ध्यानथी स्थिरता आवे. अनुभवतुं जे सुख व्यानी चेतन पावे, पिंडस्थादिक ध्यानथी तो अजरामरपद पास छे; आत्मध्याने सर्वसिद्धि देवता पण दास छे. ध्यानक्रिया करनार जगत्मां जय करनारो, भवसागरने सहजवारमा ते तरनारो; ध्याने लब्धि सर्व ध्यानथी थाय न दुःखी, अन्तरमा उपयोग ध्यानथी शाश्वत सुखी; ध्याने ज्ञान प्रमाण छे ने ध्याने स्थिरता सार छे, ध्यानिनुं बहु मान करतां जगत्मां जयकार छे. ॥३॥ संवरमा छे सार ध्यान जगमां जयकारी, धन्य धन्य अवतार ध्यानिनो शिवसुखकारी; ध्याने शुद्ध चरित्र ध्यानथी सर्वे लेखे, धन्य धन्य अवतार ध्यानिनो आतम देखे, जेवू चेतन ज्ञान छे दील तेQ ध्यान कराय छे, स्याद्वादज्ञाने ध्यानथी तो जन्मनां दुःख जाय छे. ॥४॥
For Private And Personal Use Only