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मन चंचळता सर्व टळे छे ध्यान कर्याथी, आतमज्ञाने सहज समाधि ध्यान वर्याथी; आतम ते परमातम ध्याने निश्चय समनो, भेदभाव सहु दूर करे छे तेमां रमजो धर्म ध्यानने शुक्लथी तो स्वर्गने शिव थाय छे, ध्याननी विशुद्धता लही चिदानंद परखाय छे. चेतन शुद्धि ध्यान करे छे दोष हरीने, चिदानंदथी मोज करे ले ध्यान वरीने; मुक्तिनां सुख जीवंतां पण ते दर्शावे, अंतरमा उद्योत ध्यानथी क्षणमां थावे; ध्यान सकल गुणस्थान छे ने ध्यान अमृतपान छे, बुद्धिसागर सकलगुणमां ध्यान एक परधान छे.
॥५॥
गंभीरगुण.
छप्पयछंद. धन्य धन्य गंभीर जगत्मां गुण छे सारो, मुन्दर लागे सर्व जनोने गुण ए प्यारो गंभीरगुण धरनार जगतमां जय वर्तावे, शुद्रादिक सहु दोष पलकमां दूर हठाव समुद्रनी छे उपमा अहो गंभीर गुणने जाणजो, सत्य समजी भव्य लोको हृदयमांहि आणजो. ॥१॥ गंभीरगुण धरनार जगतमा सहुथी मोटो, गंभीरता वण वात करंतां वळशे गोटो; गंभीरगुणथी नात जातमां संप रहे छे, गंभीरगुणथी ज्ञान वधे हे सन्त कहे छे
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