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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org وف मन्त्रतन्त्र फले सहु, शीयलना तेजथकी. शीयलथी मान सहु, दुनीआमां थाय छे, शीयलने धारवाथी, स्मरदोष मारवाथी; भवजलनिधि क्षेम, सहज तराय छे. देवन्द गुणगाय, शरीर निरोगी थाय; ब्रह्मत धारवाथी, सुयश पमाय छे. विन्द नाश थाय भूत प्रेत वश थाय; शीयल सुगुण गृह, मङ्गलनुं द्वार छे, जेवं बोले ते थाय, सहु दोष दूर जाय. शीयल धारकजन धन्य अवतार छे; शीयल सुगन्धि वेश, शियलथी शुभ वेष, शियलने सागरनी उपमा प्रमाण छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १ ॥ नरनारी धरो सहु शियल सन्नाह अंग; धीनि शीयल सत्य जीवननो प्राण छे. ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only दया महिमा. मनहरछन्द. दया दुःख हरनारी, दया मुख करनारी, दया गुणगृह बेश, दयाथकी धर्म छेः दयाविना तप यम ध्यान सहु फोक अहो, दयाकी देवगति सिद्धिसौधशर्म छे; दयाविना त कोइ सफल न थाय भव्य, दया कल्पवृक्ष अने शेष व्रत वाड छे. दया कामकुंभ अने दया स्पर्शमणि सत्यः दयांविना मुक्ति म्हेल बंध तो कमाड छे. ॥ १ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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