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मन्त्रतन्त्र फले सहु, शीयलना तेजथकी. शीयलथी मान सहु, दुनीआमां थाय छे, शीयलने धारवाथी, स्मरदोष मारवाथी; भवजलनिधि क्षेम, सहज तराय छे. देवन्द गुणगाय, शरीर निरोगी थाय; ब्रह्मत धारवाथी, सुयश पमाय छे. विन्द नाश थाय भूत प्रेत वश थाय; शीयल सुगुण गृह, मङ्गलनुं द्वार छे, जेवं बोले ते थाय, सहु दोष दूर जाय. शीयल धारकजन धन्य अवतार छे; शीयल सुगन्धि वेश, शियलथी शुभ वेष, शियलने सागरनी उपमा प्रमाण छे.
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॥ १ ॥
नरनारी धरो सहु शियल सन्नाह अंग; धीनि शीयल सत्य जीवननो प्राण छे. ॥ २ ॥
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दया महिमा.
मनहरछन्द.
दया दुःख हरनारी, दया मुख करनारी, दया गुणगृह बेश, दयाथकी धर्म छेः दयाविना तप यम ध्यान सहु फोक अहो, दयाकी देवगति सिद्धिसौधशर्म छे; दयाविना त कोइ सफल न थाय भव्य, दया कल्पवृक्ष अने शेष व्रत वाड छे. दया कामकुंभ अने दया स्पर्शमणि सत्यः दयांविना मुक्ति म्हेल बंध तो कमाड छे. ॥ १ ॥