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उपशम दोयभेद चरणने समर्कित, अष्टादश भेद क्षयोपशमना धारजो; ज्ञान चार ऋण छे अज्ञान ऋण दर्शनने, दानादिक लब्धि पंच तेमांहि मेलावजो; समकित चारित्रने संयमासंयम एम, भेद क्षयोपशमना चित्तमां रमावजो. चार चार गतिने कषाय तीन लिंग वळी, पड लेश्या अज्ञान मिथ्यात्वने निवारजो: असिद्धता असंयम एक विश भेद गणो, औदयिक भावनाए दिलमांहि धारजो; रत्नत्रयी दानादिक पंच अने समति, नवभेद क्षायिकना तेरमे पमाय छे; जीवने भव्यत्व अभव्यत्व ए त्रण भेद, परिणामि भावनाए स्वभावे सुहाय छे. दोहरा.
वचनामृत.
मनहरछंद.
बैरीमो विश्वास तज-सरल सुजन भज,
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॥ १ ॥
पंचभावना भेद ए त्रेपन थया रसाल; छठो सन्निपात छेज कहेता दीन दयाळ ॥ १ ॥ उपादेयने हेय. छे ज्ञेयभाव छे पंच;
आत्म स्वभावे लीनता रहे न आश्रव रंच. ॥ २ ॥ मनन स्मरण विवेचना करतां सत्य विवेक बुद्धिसागर आत्ममां शोधो धरीने टेक.
॥ २ ॥
॥ ३ ॥