________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१॥
गुरुजन हितशिख जूठ नहि जाणजे; धननो कुव्यय कदी करजे न प्राण पडे, परनारी वेश्यासंग दीलमां न आणजे; कुपन्थ कुग्रन्थ त्यजी वीरनां वचन भजी, समाकित सद्दहणा दिलमां ठसावज; जिनवाणी सत्य जाणी आदरजे हितआणी, सत्यसार पामी जीव शिवपुर जावजे. गुरु गम ज्ञानविना भण्यामां तो भूल थाय, गुरुगम ज्ञानविना निर्णय न थाय छे; गुरुगम ज्ञानविना पडया छे भणेल जीव,, गुरुगम ज्ञान थकी शंका सहु जाय छे; गुरुगम ज्ञानविना पन्थनी न सुज पडे, गुरुगम ज्ञानविना गमार गणाय छे; गुरुगम ज्ञानविना पन्य मही प्रगटे छे, धीनिधि कहे छे गुरुगम सुखदाय छे.
नीतिवचनामृत.
॥ मनहरछंद. ॥ मुजन सङ्गति कर गुण सहु चित्त धर, मूढजन सङ्ग तजो मुगुरुनी सेवना; व्यसनिनो सङ्ग त्यज वित्तसम वेष सज, सत्य वात समजीने असत्य उवेखना; बोले तेवो बोल पाळ कोइने न देजे आळ, कजिया कुसम्प त्यजी सम्पने वधारजे; इर्ष्या अभिमान क्रोध वेर झेर वारी सहु,
For Private And Personal Use Only