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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३० कर्म संगधी जगमां को निर्दोष छे, सत्य विचारी करशो मुनिवर सेवजो. सन्त मुनिवर जगमां तरवा तीर्थ छे, सन्त मुनिवर सेव्याथी सुख थायजो; मुनिवर भक्ति साची शक्ति अर्पती, मुनिवरना बहुमाने धर्म सहायजो. सर्व गुणां श्रावकथी अधिका मुनि; अधिक गुणिनुं करं जग बहु मानजो; मुनिवर देखी वन्दन करतां भावथी, सद्गुरु मुनिवर शासनना सुलतानजो. पापोदयथी मुनि अरुचि संपजे, पुण्योदयथी मुनिपर होवे प्रेमजो, तरतमयोगे मुनिवर साधो साधना, सद्गुरुमुनिनी श्रद्धाथी गुणक्षेमजो. मुनि विना तो श्रावक होवे नहि कदी, मुनि विना व्यवहार समकित भ्रंशजो ः प्रत्यक्ष मुनि वण समकिती नहि श्रावको, व्यवहारोत्थापनथी शासनध्वंसजो. मुनिनी पासे व्रत उच्चरवां भाखियां, मुनिनी पासे करं प्रत्याख्यानजो; सूत्रोमां भाख्यं छे सत्य विचारीने; मुनि गुरुनुं कर बहु सन्मानजो. कोइ कहे छे आज कालना साधुओ, पाळे नहि साधुना पंचाचारजो; जुठा सर्वे बोले ते अज्ञानथी, For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघ. ॥ १२ ॥ संघ. ॥ १३ ॥ संघ. ।। १४ ।। संघ. ।। १५ ।। संघ. ।। १६ ।। संघ. ॥ १७ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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