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मुनिवरना उपदेशे वीर विश्वास छे, महीतलमांहि मुनिवर सत्य सनाथजो
पंच विषना उदये पंचम काळमां, असंयतिनी पूजानुं आश्चर्य जो; दीक्षा वण संयतनी पेठे पूजना, लघुता पामे संयत सद्गुरुवयेजो. केक श्रद्धा मुनिपरथी उठाडीने, मनमां आवे ते माने लोकजो; पश्चिमनी केळवणी कुतर्क भर्या, नास्तिकथने माने सघळु फोकजो.
मुनिवरनी श्रद्धाथी सत्यज संपजे, मुनिवरनी भक्तिथी शाश्वत शर्मजो, मुनिवरनी संगतथी नास्तिकता टले. मुनिना वैयावृत्ये नासे कर्मजो.
मुनि करे ते तने श्रावक शुं करे, मुनिवर जंगम तीरथ गंग समानजो; मुनिनी सेवा शिवना मेवा जाणीए, मुनि गुरुथी पामो शाश्वत स्थानजो. मुनिनिन्दा करवामां मोडं पाप छे, करो नहि मुनिनिन्दा नरने नारजो; दोषदृष्टि दोषज ज्यां त्यां भासशे, गुणदृष्टिथी गुण भासे निर्धारजो. दोषे भरीओ जाणो आ संसार छे, सर्व गुणी तो अरिहन्त छे देवजो;
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संघ. ॥ ६ ॥
संघ. ॥ ७ ॥
संघ. ॥ ८ ॥
संघ ॥ ९ ॥
संघ. ।। १० ।।
संघ. ।। ११ ।।