________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२८
मंघ. ॥१॥
संघ. ॥२॥
ॐ नमः सद्गुरवे.
गुरुप्रभाव. संघ चतुर्विध मोटा मुनिवर वंदीए, मुनिवर वंदे कर्म मर्मनो नाश जो; पुण्योदयथी मुनिवर दर्शन पामीए, मुनिवरनी श्रद्धाथी शिवपुर वासजो. श्री नवकारे पंचम परमेष्ठेि कह्या, यथाशक्तिथी साधे संयम योगजो; कनक कान्ता त्याग कर्याथी त्याग छे, आतमध्याने साधे शिवपुर भोगनो. कुमतिथी मुनिवरनी निन्दा केइ करे, केइक करता मुनिवरनुं अपमान जे; अज्ञो तेवा कर्म ग्रहे छे चीकणां, मुनिनिन्दाथी भूले आतमभान जो. केइक कहेता मुनिवर अधुना को नहीं, कहेवू एवं निजमति कल्पनमात्रजो; आत्मार्थी वर्ते छे मुनिवर मही घणा, मुनिवर वन्दन करतां निर्मल गात्र जो. द्रव्यादिकथी साधे संयम साधना, शासन नायक धर्म प्ररुपक धीरजो; सदुपदेशे भव्यजनोने बोधता, वैरागी त्यागी मुनिवर गंभीर जो. मुनिवरना दर्शनथी निर्मल नेत्र छे, मुनिवरदाने पवित्र होवे हाथजो;
संघ. ॥३॥
संघ. ॥ ४ ॥
संघ. ।। ५॥
For Private And Personal Use Only