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पिस्ता. ॥ २० ॥
पिस्ता. ॥ २१ ॥
पिस्ता. ।। २२ ।।
समकितदाता मुनिगुरु जयकार जो; संघ चतुर्विधमांहि मुनिवर सद्गुरु, वन्दे पजे धन्य सफल अवतार जो संथारापोरिसीमां पण मुनिगुरु, समकितदायक धर्माचारज तेहजो; धर्माचारज श्राद्ध कह्या ते जाणीने, मुनि गुरुने आदरजो गुण गेहजो. चउसरणपयन्नामां मुनिवर गुरु, वीसस्थानकमां मुनि गुरु सुखकारजो; स्थाप्या गणधर मुनि वेषे एकादश, समवसरणामां वीर प्रभुए सारजो. धर्मसंग्रह ने धर्मरत्नमां धारजो, उत्तमभाख्या सद्गुरु मुनि आचारजो; संघाचारे भाख्या साधु सदगुरु, मुनि गुरुवर संघपट्टकमां निर्धारजो. उमास्वाति प्रशमरतिमां भाखता, दीक्षा धारक मुनि सद्गुरुजी सारजो; दिगम्बरो पण मुनि गुरुने मानता, मुनि सद्गुरुने मान्याथी भव पारजो. युग प्रधानो मुनिना वेषे सहु कह्या, वेष व्रत, पालन सहेजे थायजो; बुद्धिसागर सद्गुरु मुनिने सेवतां, प्रेमे प्राणी परम महोदय पाय नो.
पिस्ता. ॥ २३ ॥
पिस्ता. ॥ २४॥
पिस्ता. ॥ २५ ॥
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