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जगत्मां जागवू जोग, जगत्मां भूलवू भोगे; जगत्मां मोहनी झाडी, जगत्मां धर्मनी वाडी. ॥४॥ जगत्मां सत्य परग्वातुं, जगतथी दील हरखातुं; जगत् जंजालथी दृरे, बुद्धचब्धि देव मुख पूर. ॥५॥ .
वखतना विचित्र रंग.
गझल. कोइ दिन ताठ ने तडको, कोइ दीन भुखनो भडको; कोइ दिन लक्ष्मीनी ल्हेरो, काइ दिन रंकनो चहरो. ॥१॥ अमीरी कोइ दिन आवे, फकीरी कोइ दिन थावे; कोई दिन हस्त जन जोडे, कोइ दिन मान जन मोडे. ।।२।। कोइ दिन गाममा फेरा, कोइ दिन जंगले डेरा; कोइ दिन पुण्यनी यारी, कोइ दिन दुःखनी क्यारी. ॥३॥ अवस्था सर्व नहि सरखी, हरख जो धर्मने परखी; बुद्धब्धि धर्मनी सेवा, हमारे शुद्ध ए मेवा.
केशविटंबना.
गझट. सदा छ दुःख कंकास, रहे नहि प्रेम ता पास; सदा छे क्लेशमां कालु, वसे छे दील अंधारु. ॥१॥ नहि को क्लेशथी मुखी, सहु छे क्लेशथी दुःखी; वसे छे लेशमा कुमति, खसे छे क्लेशथी मुमतिः ॥२॥ भले अग्नि धरो हाथे, भले सो धरो माथे; परंतु क्लेश ना करवो, सदातो संप अनुसरवो. ॥३ ।।
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