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आत्मस्वभावे रमवू साच, ते विण बाकी समजो काच; वासोश्वासे बनो बनाव, आत्मप्रभु भजवामां भाव. ।। ३६ ॥ प्रभु भजन सापेक्षा घणी, व्यवहारे श्री वीरे भणी, सापेक्षे साचं छे सहु, श्रुत ज्ञाने मनमा सहहुं; सत्य सेव्य चेतन दिनमणि, प्रभु भजने सापेक्षा घणी. ॥३७॥ जिनवरनी वाणी गंभीर, समजे हरिभद्रादिक वीर, यशोविजयजी वाचकराय, श्रुत वाणी समज्या सुखदाय; आनन्द घनजी समजे धीर, जिनवरनी वाणी गंभीर. ॥३८॥ निश्चयने शोभे व्यवहार, जिनवरनी वाणी जयकार; सद्गुरु गमथी जो समजाय, तो दो भेदे समकित थाय, केवलज्ञानिवाणी सार, निश्चयने शोभे व्यवहार. ॥३९ ।। धरो ध्यान सूत्रानुसार, सफल थशे मानव अवतार; अशुद्ध पर्यायोनो नाश, आत्मिक पर्याये सुखवास, शुद्ध स्वभाव मुक्ति धार, धरो ध्यान सूत्रानुसार. ॥४०॥ यथा यथा ध्याने लयलीन, तथा तथा चेतनता पीन; ज्ञान ध्यान शक्ति अनुसार, चेतनने समजो सुखकार, चेतन जैन अने छे जिन, यथा यथा ध्याने लयलीन. ॥४१।। अचिन्त्य चेतननुं छे रूप, चेतन सेवक चेतन भूप, चेतन ध्याता चेतन ध्येय, चेतन ज्ञानी चेतन ज्ञेय. चेतन बोले चेतन चूप, अचिन्त्य चेतनतुं छे रूप ॥ ४२ ॥ कर्ता हर्ता चेतन खरे, चतुर्गति चेतन अवतरे, पञ्चम गति चेतन सञ्चरे, परमातमपद चेतन घरे. कर्म करे कर्माष्टक हरे, कर्ता हर्ता चेतन खरे. ॥४३ ।। सापेक्षाए सहु समजाय, त्यारे चेतन ज्ञानी थाय, निरपेक्षाए मिथ्या झेर, अन्तरमा वर्ते अन्धेर, समकित अन्तरमा प्रगटाय, सापेक्षाए सहु समजाय. ॥ ४४ ।।
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