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उपाधिने अळगी करी, समता स्थिरता दीलमां घरी, सत्ता ध्यावो चेतनतणी, प्रगटे व्यक्ति चेतनमणि; मान मान शिक्षा छे खरी, उपाधिने अळगी करी. ॥ ४५ ॥ सेवो सुखकर चेतनराम, तेथी सरशे सघळां काम, राम राम चेतन छे साच, ते विण जाणो सघळं काच, ठरशो तेथी निर्भय ठाम, सेवो सुखकर चेतनराम ।। ४६ ।। तुज सेवनथी सेव्यं सर्व, तुज सेवनथी नासे गर्व, तुजमां सर्व समायुं अहो, चेतनभावे चेतन रहो: तुज रमणता रुडं पर्व, तुज सेवनथी सेव्यं सर्व. ॥ ४७ ॥ तुज दर्शनथी भ्रान्ति जाय, तुज दर्शनथी शान्ति थाय, तव दर्शनथी सत्यानन्द, तव दर्शनथी विघटे फन्द चेतन दर्शन सन्तो गाय, तव दर्शनथी भ्रान्ति जाय. ।। ४८ ।। तव दर्शनथी शाश्वत सुख, तव दर्शनथी जावे दुःख, तत्र दर्शनथी जग जयकार, तब दर्शनथी स्थिरता सार; तव दर्शनी भागे भूख, तत्र दर्शनथी शाश्वत सुख ।। ४९ ॥ सत्य सत्य दर्शन व सार, तव दर्शनथी नासे मार, तव दर्शनने योगी चहे, तव दर्शनने वीरला लहे; तव दर्शननो सहुने प्यार, सत्य सत्य दर्शन तव सार ॥५०॥ श्वासोश्वासे चेतन ध्यान, हरतां फरतां चेतन भान, रटना हृदये लागे खरी, जन्म मरण तत्र नावे फरी; अन्तर अनुभव भासे ज्ञान, श्वासोश्वासे चेतन ध्यान ॥५१॥ प्रवृत्तिमां पडे न चेन, आतम अनुभव प्रगटे घेन, द्वेष क्लेश इर्ष्यादिक टळे, चेतनता चेतनमां भळे; दीवस सरखी भासे रेन, प्रवृत्तिमां पडे न चेन. 11 92 11 अनुभवी चेतनमा रमे, चेतन स्मरण मनन मन गमे,
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