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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१ चेतनना उपयोगे धर्म, बाहिर भावे बांधे कर्मः बाहिर्हेतु संयम वेश, व्यवहारे छे मुनिनो वेष, बाहिर संयमथी छे शर्म, चेतनना उपयोगे धर्म. चेतनव्यक्ति मांटे सहु, जाणंताने शुं बहु कहु, शुद्ध भावमां चेतन वसे, तेथी कमीकरणो खसे; शुद्ध विचारे संयम ग्रहु, चेतन व्यक्ति माटे सहु. साची चेतननी छे भक्ति, भक्तिथी प्रगटे छे शक्तिः साचो साहिब सेवो भाइ, चेतन भावे सत्य सगाई, प्रकटे परमातमनी व्यक्ति, साची चेतननी छे भक्ति || ३० || भक्ति महिमा अपरंपार, चेतन भक्ति सहुमां सार; भक्तिथी थाशो भगवान, भक्ति सर्व गुणोनी खाण, ॥ २९ ॥ तार तार आतमने तार, भक्ति महिमा अपरंपार ।। ३१ ।। भक्तिमा मळशे जो जीव, भक्तिथी थाशे ते शीव; चेतन भक्तियां जो प्रेम, हरतां फरतां वर्ते क्षेम; आत्मानुभव लहे सदीव, भक्तिमां भळशे जो जीव. ॥ ३२ ॥ पर आलम्बन जिनवर देव, साची केवल ज्ञानी सेव, जिन पूजनथी पूजक थाय, जिन ध्याने तेवो थइ जाय; मिथ्या मतनी त्यागो देव, पर आलम्बन जिनवर देव. ||३३|| बाहिर विषये हर्ष न शोक, फोगट माने मोही लोक, समभावे कर सहु काम, लेवं श्री जिनवरनुं नामः समजे वीरला सज्जन लोक, बाहिर्विषये हर्ष न शोक. ॥ ३४ ॥ पुष्टालम्बन गुरुने भजी, गुणगण माला अन्तर सजी, ध्यावो साचो आतमराम, अनेक नामो पण नहि नाम; पुदल ममता ज्ञाने त्यजी, पुष्टालम्बन गुरुने भजी ॥ ३५ ॥ आत्मप्रभु भजवामां भाव, भवजलधियां साचं नाव, For Private And Personal Use Only ॥ २८ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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