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१४८ महीमां सदा धैर्य धारीज मोटो, विचार्या विना मानवी थाय छोटो. ॥ १ ॥ कुडा वाक्यमां क्लेश छे दुःखदायी, भला कार्यमा शान्ति छे शर्मदायी अरे हास्यथी दुःख मोडं थनारु, महीमां सदा इष्ट छे वाक्य सारु. बुरी कामनाथी कयुं विष मोडे, असदवाक्यथी कोण छे जाण खोडं; सदा मूर्खनी संगतें दुःखगोटा, दयाना विना आवशे जीव तोटा. गुरुवाक्यना लोपथी दुःख भारी, नथी सन्मतिना विना सत्य यारी; अरे क्रोधथी अग्नि छे कोण मूंडी, बुरी कोण तृष्णाथकी अन्य ठूडी. ॥ ४ ॥ नथी शर्म संतोष जे विचारो, विवेके ग्रहो देहथी ब्रह्म न्यारो; सहु तीर्थ- तीर्थ छे आतमा रे, विवेकी मुदा आतमानेज तारे. ॥ ५ ॥ कळामां कळा धर्मनी एक साची, कळामां कळा कर्मनी सर्व काची; कथामां कथा धर्मनी दुःख टाळे, जुठी मोहनी टेवने जेह टाळे. ॥ ६ ॥ सहु वित्तथी ज्ञानवें वित्त साधु, कुडां वेंण बोले बुरु तास डाचं करे साधना धर्मनी तेह साधु,
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