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अहंभावां मस्त ज्यां त्यां फरे छे, कूडां कर्मने केम जाणी करे छे, अरे मोहना तोरमां केम माच्यो, रुपाळा रमारंगमां शीद राज्यो. अरे ठाने माठमां सर्व खोयुं, विचारी कदी रुप तारु न जोयुं, खरे मोहनी धूळी मुख धोएं, अरे जीव तें पाणीने शुं वलोयं. कदी सन्तने दान दीधुं न हाथे, धरी ना कदी सद्गुरुआण माथे, कर्यो धर्म ते आवशे एक साथे, जिनेन्द्रे का ज्ञानथी वीरनाथे. ॲण्यो ना गॅण्यो धर्मनां तव सारां ॲण्यो ने गॅण्यो तत्व जे छे नठारां, जिनेन्द्रे कहे अरे तें विसाय, फसी मोहमा आउने फोक हार्ड
हवे चेती ले आतमा धर्म जाणी, गुरु बोधथी जाणी ले जिनवाणी, कहे धीनीधि धर्मी शर्म खाणी, तृषावंतने इष्ट छे जेम पाणी.
हित वचनामृतम् .
भुजंगी छन्द. महीमां सदा अंध छे मूढ प्राणी, महीमां सदा पूज्य छे सत्यवाणी;
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