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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतनदर्शन. जीव जोइले निज रुपने झट शुद्ध परखी तत्त्वनिश्चय धारजे; संसार छ पण नास्तिभावे आतममां अवधारजे. जीव० भान भूली मनमां फूली, झुल्यो सहु संसारजी; भूतकालिक विषय भूली, मोह निंदा वाररे. जीव. ॥१॥ आतमहीरो हाथ आव्यो, देखीने तुं देखजी; मोहवाजी त्यां शुं राजी, प्रेमथी झट पेखरे. जीव. ॥२॥ खुदा विष्णु राम तुं छे, अर्थभेदें भेदजी; शब्दभेदे अर्थ एके, अनेकान्तनय वेद रे. जीव. ॥३॥ स्याद्वादभावे सन्य जाणी, सेवीए आतमरामजी; ब्रह्म गुण आधार आतम, ब्रह्मनुं ते धामरे. जीव. ॥४॥ एकनयथी दृष्टिभेदे, भेद प्रगटे जाणजी; स्याद्वाद समज्या विन जगमां, धर्म ताणताणरे. जीव.।।५।। चित्तवृत्ति स्थिरताथी, आतमभक्ति थायजी; आतम ते परमातमा छे, ध्यानथी परखाय रे. जीव.॥६॥ आनंदल्हेरो ऊछळेजी, ध्यानसागरमोहिनी; ज्ञान दर्शन चरण स्थिरता, एकचित्त प्रवाहरे. जीव.||७॥ ध्यान सरवर हंस खेले, आनंद अपरंपारजी; बुद्धिसागर भक्तिभावे, थयो सफल अवताररे. जीव.॥८ -~->> ------ “ गुरुशरण " गुरुशरणथी जीव जागजे झट मोह माया क्लेश निंदा वारजे गुरुचरणनी सेवनाथी आतमने अरे तारजे. गुरु० गुरुकृपा वण जीवडा अहो, ठरे न एके ठामजी; 30 For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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