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हंसा. ॥१॥
हंसा. ॥ २ ॥
हंसा विनारे वादळ चमके वीजळोजी, नहीं ज्यां अवरतणो आधार. हंसा विनारे आंख जिहां देखजी, नहि जिहां निद्रा आवे लगार; हंसा पाम्या पछी नहीं ज्यां पामजी, एतो निश्चयपद निरधार.. हंसा गगनगढे जइ म्हालबुंजी, दिशा पश्चिम खोली द्वार; इंसा अजपाजापे जिहां पहोंचकुंजी, निराकार ने जे साकार. चरे चारो मोतीडांनो हंसलोजी, देखे तेहीज हंस विचार; हंसा बुद्धिसागर पद ध्यावतांजी, तारो नावे फरी अवतार.
हंसाः ॥३॥
हंसा.॥४॥
इरियावहियाना भेद.
कवित.
पांचसो त्रेसठ जीवतणा भेद, शास्त्र थकी लहीजे, अभिहिया आदि दश पद लइने, दश गुणातो कीजे; तेहने राग अने वळी द्वेष, द्विगुणातो करीए, मन वचन अने कायाए, त्रिगुणा चित्त धरीए. कर करा अनुमोद, भूत भविष्य वर्तमान, अरिहंतआदि छपदगुणतां, पुरा थया शुभखाण;
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