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कृष्णस्तवन. ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने-ए राग. औदयिक जलधिमां शुं उंघो कृष्णजी, रत्नत्रयी लक्ष्मीना स्वामी धीर जो, अनन्त निजगुण सृष्टिपालक विष्णुजी, गिर्वाणी धारक गिर्धारी वीर जो, औदयिक. ॥१॥ समकित चक्र सुदर्शन हृदये धारता, मोहारि जागो अलबेला नाथजो, जागतां दुष्टो सहु दूरे भागशे, कोइ न शत्रु भरशे तुजथी बाथजो. औदयिक. ॥२॥ प्राणपति परकर्ता भोक्ता तुं थयो, परस्वभावे रमतां श्रीभगवानजो, आप स्वभावे रमतां सुखडां सहु लहे, जाग जाग चेतनजी लावी भानजो. औदयिक ॥ ३ ॥ परकर्ता परभोक्ता स्वामी नहि हुवे,
आप स्वभावे रमतां आतमरामजो, निजगुण कर्ता परगुण हर्ता ध्यानथी, कृष्ण विष्णु ए छे सहु आतम नामजो. औदयिक ॥ ४ ॥ अनेकान्त दर्शनथी चेतन कृष्ण छ, शुद्ध चेतना गोपी विनवे व्हालजो. बुद्धिसागर सप्त नयोथी आतमा, ध्यावो गावो प्रगटे मङ्गल माल जो. औदयिक ॥ ५ ॥
॥ आत्मविज्ञप्ति ॥ ॥ वहेंचरों भक्तिनां भाइ नाणां ए राग. ॥ आतमा अरजी आ उरमा स्वीकारो, थ्याने पोताने तो तारोरे.
आतमा.
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