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धरि धर्म व्यवहार जगत्मां जय वर्तावे, धरि धर्म व्यवहार जगत्मा कीर्ति पावे धरि धर्म व्यवहार स्वर्गने शिवमा जावे; धरि धर्म व्यवहार तत्वने बहु फेलावे, व्यवहार धर्म लद्या विना मयुर पृष्ठवत् मानवी, बुद्धिसागर ज्ञानथी भवि हितशिक्षा दिल जाणवी. ।।३।।
ब्रह्मस्वरूपोपदेश.
झुलणा. ध्यान कर ब्रह्मनुं ध्यान कर ब्रह्मन, ब्रह्म चेतन प्रभु तुं कहायो; शुद्ध उपयोगथी शक्ति व्यक्ति जगे, शुद्ध रूपे प्रभु तुं मुहायो. ध्यान. ॥ १॥ कर्मनी वर्गणा खेरवे ध्यानथी, ध्यानथी सत्य संतोष आवे; ध्यानथी अनुभवे जागती ज्योत त्यां,
आतमा मुक्तिनुं शर्म पावे. ध्यान. ॥ २ ॥ ब्रह्म ते आतमा आतमा ब्रह्म छे, वीर वचनो यथा सत्य सेवे; वचन सापेक्षथी ब्रह्मने जाणतां, दान निजनुं सदा नीज देवे. ध्यान. ॥ ३ ॥ सप्त नयथी कह्यो भाव साचो लह्यो वचन एकान्तनी वात जूठी; वचन निरपेक्षथी भाव मिथ्या लहे, ब्रह्मनी वात निरपेक्ष बूठी. ध्यान.॥४॥
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