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ध्यान. ॥ ५॥
ब्रह्म निरपेक्ष संग्रह नये मानतां, ब्रह्ममां भ्रान्तिथी भूल थावे; वचन सापेक्ष संग्रह नये मानतां, व्यक्तिनी भिन्नता सत्य पावे. सूक्ष्म ज्ञानि प्रभु गुरुगमे धारिने, समजजो सप्त नयथी प्रमाता; तत्ववादे ग्रहे आतमा ब्रह्मने, बुद्धिसागर मुनि ब्रह्म माता.
ध्यान. ॥६॥
आत्माने जागृतिभावनो उपदेश.
झुलणा. जागरे आतमा जागरे आतमा, मोहनी उघमां चोर टूटे; वित्त दारा अने विपयनी वासना, पाशथी शत्रुओ खूब कूटे. जाग.? वृत्ति बाहिर्वहे कर्म आठे आहे, आतमा भ्रान्तिथी भान भूल्यो; क्रोधने मानथी लोभ मायायकी, लक्ष चोराशिमां खूब झूल्यो. जाग.२ पामी मानवपणुं पुण्य उत्कर्षथी, मुक्ति साधन अरे ते विसायु; खूब अपकृत्यथी पाप गाडं भर्यु, जाव, नरकमां केम धार्यु. जाग.३ श्वास उच्छवासथी जीव आयु घटे, खबर नहि कालनी केम थाशे; कालनुं कृत्य ते आ क्षणे कीजिए,धर्मथी आ भवाब्धि तराशे. जाग.४ कोटि धन आवशे नहि कदी साथमां, पाप ने पुण्य साथेज आवे; दान करजे सदा धर्म वाटे मुदा, दानथी आतमा मोक्ष पावे. जाग.५ स्मरण कर देवतुं शरण जे दीननु, साधुना दर्शने पुण्य थावे; साधु दर्शनथकी साधु वन्दनथकी, कोटिभवनां कर्यां पाप जावे. जाग.६ साधुना सङ्गथी आतमा जागतो, तीर्थ जङ्गम मुनि भव्य सेवो; तीर्थ जंगम मुनि कल्पवेली अहो, पुष्करावर्तना मेघ जेवो. जाग.७
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