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सुख नहि ललना पुत्री, सुख नहि तन धनश्री. दुःख ||२|| चेतनमा सुख नित्य छे, ज्ञान ध्यानथी वरः बुद्धिसागर धर्मश्री छेडे छूटे फरं.
दुःख. ॥३॥
जगत् जीवोना विचारनी विचित्रता.
गझल.
॥ १ ॥
चढे छे कोइ वरघोडे, चहे छे कोइ वरजोडे, पंडे छे कोई पाताले, चढे छे कोइ शिव म्हाले. जगतमा कोइ जन जोगी, जगतमां कोइ जन भोगी, जगतने कोइ जन जुवे, जगत्ने कोइ जन रुवे. जगत्मा कोइ जन रागी, जगत्मा कोइ वैरागी, जगत्ना मोहमा फसीया, जगत्ना मोहमां रसीया, ॥ ३ ॥ जगतथी कोइ कंटाळे, जगत्ने कोड पंपाळे.
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जगतनी आशथी दासा, जगत्ना जूट विश्वासा. जगतमां मोहथी घेला, जगतमां मोहधी मेला, जगतमा कोइ जन झूल्या, जगत्मां कोइ जन भूल्या. ।। ५ ।। जगत् छे दुःखनी क्यारी, जगत्नी बात छे न्यारी, जगतमा कोइ पडाया, तरे छे कोइ जन डाह्या. अरे कोइ मोहथी वांका, अरे कोई मोहथी फांका, बुद्धयन्धि संतनी सेवा, अमारे शुद्ध ए मेवा.
॥ ६ ॥
जगतनी अस्थिरता.
गजल.
जुने आंख उघाडी, भलां नहि लाडी ने गाडी, जीवलडा सत्य जाणी ले, हृदयमां वात आणी लें.
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॥ १ ॥