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जिन] साहिबा दीन परभावथी, जागतां सर्व शक्ति प्रकाशे; बुद्धिसागर प्रभु आतमाराम तुं, ध्यानथी ध्येय रूपे प्रभासे. अलख.९
॥ १
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आत्माने हितशिक्षा.
इन्द्रविजय छन्दः चेतन चित्त विचार अहो सहु जीवन व्यर्थ सदाय कहे छे आतम तत्व लहे सफलो भव वीर जिनेश्वर सत्य कहे छे. आदररे जीव सादरथी दील धर्म सदा मुख शाश्वतकारी धीनिधि आतम मान अरे शिख वीर जिनेश्वर तत्त्व विचारी मान अने अपमान समा गण मित्र तथा अरिभाव समाना आतम ते परमातम साहीव ध्यान थकी कवी बुहोत न छाना अन्तर धर्म धर्या विन निष्फल कष्ट क्रिया सौ चित्त सुजाणो श्वास उछास विपे मुनि नाणथी मुक्ति लहे मनमां इम आणो ध्यान धरो भली भात सदा घट वाह्य उपाधि सदा दुर वारी विश्व विषे सुखकारक ध्यानज चेतन तत्त्व विचारज धारी
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