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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ | ४ ॥ जड चेतन, सूक्ष्म स्वरुप बतावीने, उपादेय आतमने भाख्यो सत्यजो; नय निक्षेपा नवतत्त्वादिक जाणता, प्राणांते पण वदे न सूत्र असत्यजो. व्यवहार अने निश्चयथी चरण सुसाधना, दुःखकर कंचन कान्तानो परिहारजो, रत्नत्रयी साधनथी साधे प्रेमथी; सद्गुरु आणा पाळे जग जयकारजो. गृहावासने त्यागी संयम पाळता, मळतां एवा सद्गुरुनो संयोगजो; राग द्वेष मिथ्यादिक दोषो सहु टळे, शिष्यो पामे शाश्वत रूद्धि भोगजो. सद्गुरु.॥ ५ ॥ अहो अहो सद्गुरुजी शरण शरण मने, त्हारा गुणगण गातां नासे दोपजो; अन्तर रुद्धि पामे प्राणी धर्मी, सद्गुरुचरणे रहेतां गुणगण पोषजो. सद्गुरु. ॥६॥ भावधर्मना दाता त्राता तात छो, तुन सेवाथी निर्मल आतम थाय जो; तव आणाथी रत्नत्रयीनी साधना. तव आणाथी जन्म मरण दुर जाय नो. सद्गुरु. ॥ ७ ॥ जैन धर्मोद्वारक परम पवित्र छो, दीनदयाळु तव सेवा सुखकारजो; बुद्धिसागर समय सुधारस पानथी, शिष्यो पामे भवजलधिनो पारजो. सद्गुरु. ।। ८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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