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भक्ति देवी महिमा भारे, वांछित सर्वे सहेज मळे. ॥ ५ ॥ आवश्यकमां भक्तिमहिमा, जिनवाणी विस्तरथी कहे, वीरजिनेश्वर पूजामांहि, भक्ति भळतां शर्म लहे; भक्ति करतां भावज प्रगटे, भावे भव्यो कर्म दंह, भक्ति छे शूरानी सज्जन, भक्तिने विरला को चहे. ॥ ६ ॥ द्रव्य भाव दो भेदे भक्ति, भक्ति विरला भव्य करे, भक्ति शक्ति निर्मल चेतन, शाश्वत सिद्धि शर्म वरे; भक्तिथी जिनशासन देवो, सहाय करे शाश्वतपन्धे, जिनवरभक्ति देवो करता, भाख्युं छे उत्तम ग्रन्थे. चिदानन्दनी लहेरो प्रगटे, भक्ति करतां भव्य खरे, बुद्धिसागर भक्तियोगे, भवपाथोधि भव्य तरे;
॥ ७ ॥
ओगणिश चोसठनी साले, पोष शुक्ल वारस सारी, जयजय मङ्गलकारक भक्ति, भक्ति व्हारी बलिहारी ॥ ८ ॥
गुरुपद स्तुति.
ओधवजी संदेशो कहेजो श्यामने - ए. राग. सद्गुरु मुनिवर परम कृपाळु वंदीए, परोपकारी परम पूज्य गुणवंत जो; भावदयाना सागर ज्ञानी सेवतां, आवे दुःखदाय बहु भवनो अंतजो. पंच महाव्रत धारक वारक मोहने, भवजलधिथी तारक नायक नाथजो; सदुपदेशे शिष्यवर्ग झट तारता, शिवनगरीना प्रापक सारा साथजो.
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सद्गुरु ॥ १ ॥
सद्गुरु. ॥ २ ॥