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भक्ति गङ्गा समी तीर्थ साचुं गणुं, भाक्तना योगमां भूल नावे; भक्तिथी शुन्य वृत्ति वहे वाह्यमां, भक्तिथी सत्य आनन्द थावे.
भक्तिः ।। ११ ॥ भक्तिनी धूनमां देव छे आतमा, भक्ति रसथी रसिक कहावे; भक्तिना पगथिये पाद मूकया थकी, जन्म मृत्यु तणां दुःख जावे.
भाक्ति. ॥ १२ ॥ भक्तिथी सहुमळे मोह माया गळे, भक्तिना भोजने भूख भागे; भक्ति अमृत तणुं पान कीधा थकी, प्राणि रंगाय नहि अन्य रागे.
भक्ति. ॥ १३ ॥ भक्तिनी औषधी रोग सहु टाळती, भाक्तना भावथी नित्य राचं भक्ति भगवन्तनी भेद सहु भागती, देव भक्ति सहीत ज्ञान साचुं.
भाक्ति. ॥ १४ ॥ शुद्ध भावेरमी भाक्ति साची लह, आत्मनी भक्तिना केइ भोगी; बुद्धिसागरं निराकारनी भक्तिने, ज्ञानथी साधता केइ योगी.
भक्ति. ॥ १५ ॥
आत्मप्रभुनी स्तुतिः
अलणाछंदः सर्व शक्ति धणी योग चिंतामणि, योगना पगथिये पाद मूको; अष्ट छे पगथियां योगनां आतमा, पामी अवसर कदि ते न चूको.
सर्व. ॥१॥ यम अने नियम आसन तणा भेद बहु, चित्त उत्साहथी भव्य साघो; पाणने साधिए पूरकादि थकी, पांचमा भेदथी खूब वाधो. सर्व. २ धारणा धारिए ध्यानमां लीनता, एम अभ्यासथी शक्ति प्रकटे;
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