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देवना गानथी दल निर्मल बने,देवनी भक्ति विण सर्व काचं.भक्ति.? लुण विण भोजने रस जरा नहि पडे, भक्ति विण सेवना सर्व लुखी; देवनी भक्तिथी सत्यसुख सम्पजे,भक्तिविण प्राणिया थाय दुःखी.
भक्ति.॥२॥ श्वास उश्वासमां स्मरण कर देव, ध्येयरूपे सदाजिनधारी; प्रेमनी भक्तिमां आंतरू नहि कशं,देवनी स्थापना मूर्ति प्यारी. भक्ति.३ भक्तिनां अंग सर्वे ग्रही भावथी, सेविये ते सदा सुखकारी; भक्तिविण पार नहि होय संसारनो,भक्तिथी टेव टळशे नठारी भक्ति.४ भक्ति आधीन विभु आतमा भवतरे, भक्तिथी स्वर्ग सिद्धि सुहावे; देवनी भकित पण जीवना सन्मुखी, भकितकर्ता सदा सिद्ध थावे.
भक्ति. ॥५॥ देवनी भाकितथी शकित शुभ जागती,चित्त लय भक्तिथी भव्य भाळो; भक्तिमां मिष्टता संपजे स्हेजमां, भक्तिना मार्गमां आयु गाळो.
भक्ति. ॥ ६॥ भक्तिमां चित्तवृत्ति तणो रोध छ, भक्तिथी ज्ञाननी ज्योति जागे; भक्तिथी आन्तरू नहीं प्रभुर्नु कदी, भक्तिथी भक्तनी भ्रान्ति भागे.
भक्ति . ॥ ७॥ भक्तिना तोरमां जोर छे कंइ नg, भक्तिनो योग कलिकाल मोटो; भगतिया तेल जेवी लहो भक्तिने, भक्तिनो योग नहि भाइ छोटो.
भक्ति. ॥ ८ ॥ भक्ति साकारनी साधिए सत्यथी, भक्ति साकारमा चित्तलागे; पगथियु मुक्तिनुं भक्ति छे आद्यमां, चित्त चेतन प्रभु भक्ति जागे.
भक्ति. ॥ ९ ॥ भक्ति भळती रहे योगना रङ्गमां, भक्ति पण योग छे योग भक्ति; बेउ भेळां रहे नाम जूदां लहे,भक्तिना योगथी सत्य शक्ति.भक्ति.१०
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