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सुतनी विष्ठा धोवे माता प्रेमथी, बुद्धि एव वर्तेतो सुख क्षेमजो. शत्रुपर पण शत्रु बुद्धि टाळवी, शाश्वत शान्ति पामो जीवनां वृन्दजो; अनुभवो आतम सम सर्वे आतमा, टळो विकारी मायाना महाफन्दजो. मूंडानुं पण भुंडं कदी न इच्छवं, रिपर पण कदी न करं वेरजो; समभावे वर्तीने आ संसारमां सर्व जीवो पर करेल टाळो झेरजो. वादविवाद टाळी व्हाला बन्धुओ, करशो जन्मी आतमनुं कल्याणजो बुद्धिसागर वर्तो शान्ति सर्वने, एवी बुद्धि आपे शिवनुं स्थानजो.
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सहु. ॥ ४ ॥
सहु. ।। ५ ।।
सहु. ॥ ६ ॥
सहु. ॥ ७ ॥
दुर्जनलक्षण.
मनहरछन्द.
गुणनो न राग होय अवगुण देखनार; पयमांहि पुरा काढे दुर्जन गणाय छे, सन्तने कुटिल कहे कुटिलने सन्त कहे; मूकी सत्यपन्थ अने पन्थे ते जाय छे. सज्जन मनुष्य दोष देखवामां शूर होय; पारकानुं हुं देखी मनई दुःखाय छे, चांदा जेम काक देखे पारकाना दोष तेम; देखवानी बुद्धि जेनी अवळी सदाय छे.
॥ १ ॥