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“ शोक विषे."
छप्पयछद. शोके अकल जाय शोकथी चिन्ता प्रगटे; शोके तनुने ताप शोकथी शान्ति विघटे, शोके भूले भान कशुं नहि हाथे आवे; शोक कर्याथी आर्त ध्यान तो स्हेजे थावे. शोके सूझे नहि कशं ने शोके मन दुःखाय छे; जगत्माही शोकयोगे हर्ष दूर जाय छे. ॥१॥ शोके नासे प्रेम शोकथी प्रगटे भ्रान्ति शोके तनुमा रोग वगडती तनुनी कान्ति; शोके स्थिरता नाश शोकथी जीवन बगडे; बंध पडे छे कर्म शोकथी वर्ते झघडे. शोकसागर जे पडया ते चतुगतिमां रडवड्या; अशुभध्याने पुष्ट थइने केइक लाखो लडथडथा. ॥२॥ शोके अश्रुधार शोकथी हिम्मत नासे, शोके शत्रु आप शोकथी ध्यानज नासे; शोके दीनता दीन शोकथी क्यांय न सारूं, शोके सन्मति नाश शोकथी होय नठारु; शोके धीरज जाय छे अहो शोके मूढ कहाय छे; बुद्धिसागर समजशो अरे शोकथी दुःख थाय छे. ॥३॥
आळदोष.
छप्पयछंद. परने देवे आळ बाळ तेनुं मुख भूईं;
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