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१४० चेतनना ज्ञानथकी संयम सुहाय छे, चेतनना ज्ञानथकी माया मोह दूर जाय; चेतनना ज्ञानथकी आनन्द लहाय छे. चेतनना ज्ञानथकी टळे मान मळे सान; चेतनना ज्ञानविना भवमां भमाय छे. चेतनना ज्ञानथकी संयम सफल थाय; चेतनना ज्ञानथकी प्रतीति पमाय छे, चेतनना ज्ञानथकी आनन्द अपार होय. चेतनना ज्ञानथकी भ्रमणा भूलाय छे, चेतनना ज्ञानथकी उपाधि अलग जाय; चेतनना ज्ञानथकी जिन तो जणाय छे. चेतनना ज्ञानथकी तप जप सफलता; धीनिधि चेतनज्ञान उत्तम गणाय छे.
श्री पार्श्वनाथस्तवन.
सवैया एकतीसा. पार्श्व जिनेश्वर मंगलकारी, वन्दन होजो वारंवार; तब सेवन पूजा भक्तिथी, पामे प्राणी भवनो पार. अलख निरंजन निर्भयदेशी, मंगलमालाना करनार; जिनपडिमा जिन सरखी भाखी, भक्तिथी आवे भवपार. ॥१॥ भगवती रायपसेणी सूत्रे, जिनपडिमा वन्दनना पाठ; जिनपडिमा पूजाथी संवर, समजी ठाली मूको ठाठ. समवसरणमां जिनवर जेवी, जिनपडिमा वर्ते जयकार; वन्दन पूजन भक्ति करतां पाणी पामे भवनो पार. ॥२॥ धनने माटे कागळ नोटो, काढे छे जेवी सरकार;
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