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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ नवधाक्रिया भक्ति स्वाध्याय. दुहा. वर्धमान जिनवर नमुं, चोवीसमा सुखकार, शासन यति तति पति नं, क्षायिक गुण धरनार. ॥१॥ सद्गुरु पदपंकज नमी, गाशुं भक्ति स्वरूप; नवधा भक्ति इशनी, करतां विघंटे धूप. नवधा भक्ति ने करे, एक चित्तथी नित्य, परम महोदय पद वरी, होव शुद्ध पवित्र. अथ प्रथम श्रवणक्रिया. 11211 For Private And Personal Use Only ॥३॥ अनंत गुण पर्यायमय, चेतनद्रव्य सदाय; श्रवण करे बहु मानथी, प्रथम क्रिया सुखाय ॥ १ ॥ राग केदारी अथवा आशाउरी. श्रवण करो सम्यक् चेतननुं, जिनभाषित जीव द्रव्यरे; त्रैकालिक स्थित चेतन अस्ति, नित्य द्रव्यार्थिक भव्यरे श्र. १ काल अनादि परपरिणामे, कर्त्ता भोक्ता कथायरे, भेदज्ञानी कर्त्ता भोक्ता, निजपरिणामनो थायरे. निज परिणामे परिणमवाथी, पर परिणमना नाशरे, आविर्भावे मोक्ष कहावे, सिद्धबुद्ध शिववासरे, मोक्ष उपायो छे जगमांहि, ज्ञानादिक ऋण रत्नरे, पट् स्थानकना श्रवणथी समकित औपशमादि प्रयत्नरे श्र. ४ समतिदेश ने सर्व विरतिनुं, कारण श्रवण छे सत्यरे, आत्मानुभव अमृत हेतु, प्रथमक्रिया शुभकृत्यरे. जेम जांगुली मंत्र श्रवणथी, सर्पादिक विष नाशरे, तेम जीवद्रव्य श्रवण महिमाथी, मोहाहिविष प्रणाशरे. श्रवण. ६ श्रवग. ५ ३९ श्रवण. २ श्रवण. ३
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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