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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ व्यवहारे मुनिवेष ग्रह्याथी सद्गुरू, पश्चाचारे मुनिवर साचा जोय जो. पिस्तालीश. ॥ १ ॥ दशवकालिक आवश्यकमां भाखियु, आचारांगे मुनि कह्या गुरुरायजो; सूत्र कृतांगे ठाणांगे वळी देखजो, पञ्चमहाव्रतधारक मुनि सुखदायजो. पिस्ता. ॥ २॥ समवायांगे भगवतीसूत्रे भाखियुं, मुनिगुरुथी शासन चाले वेश जो; पञ्चम आरक पर्यंत वीरना शासने, संघ चतुर्विध वर्ते न धरो क्लेशजो. पिस्ता. ॥३॥ ज्ञाताधर्म कथांगे साधुनी कथा, वांची मनमां भवभय राखो भव्यजो; उपासकमां श्रावक रीति सांभळो, सद्गुरु मुनिवर मानो ए कर्तव्यजो. उत्तराध्ययने साधु श्रावक आन्तरु, व्यवहारे भाख्युं छे कहुं ते सत्यजो; सर्षवने सुरगिरि सम अन्तर जाणीने, प्राणान्ते पण वदो न वेण असत्यजो. पिस्ता. ॥५॥ पन्नवणा नंदीमां मुनिवर मोटका, निशीथ महानिशीथे मुनि गुरुरायजो; बृहत्कल्प व्यवहारे मुनि गुरु मानीए, उपदेशमालामां मुनि गुरु गुणदायनो. पिस्ता. ॥ ६॥ धर्मदासगणि वचन विचारी वीए, उपदेशमाला ग्रन्थे मुनि गुरु जोयजो; गच्छ कह्यो त्यां साचो सुविहित साधुनो, पिस्ता . ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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