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क्षायिक नव लब्धिना, भोगी शिवसुख रसीया, सिद्ध बुद्धना ध्यानथी तो, आतम तेवो थाय छे, श्वासोश्वासे समरवाथी, जन्म जरा भय जाय छे ॥ २ ॥
३ आचार्यपद स्तुतिः
छप्पयछंद. पाळे पञ्चाचार पळावे वॅरिवर साचा, ज्ञानी ध्यानी कथन करे.छे जिननी वाचा, वीर जिनेश्वर तीर्थ चलावे भाव दयाथी, शासनना सुलतान सूरिवर वीर गयाथी. गच्छ सूरीश्वर सेवीए आचारज सुखदाय छे द्रव्य क्षेत्रने काल भावे, सूरिवरा परखाय छे. सूरि विना नहि गच्छ, शास्त्रमा परगट भाख्यु, वसे गच्छमां सुमुनि सूत्रकृतांगे दाख्यु, रत्नत्रयिनी प्राप्ति गच्छे वास कर्याथी, आराधक भवि होय सूरिनी आण धर्याथी, सङ्घनायक सेविए भवि क्य धन्य ते मुनिवरा, सूत्रार्थ दाता जैनगच्छे-पति प्रकट मुख जयकरा. संप्रति शासन नायक सूरिवर वन्दन कीजे, व्यवहारे वर्तिने निश्चय सत्य ग्रहीजे, सूरिवरोनुं मान कर्याथी शासन वृद्धि, वृत धारक सूरिवर सेव्याथी शाश्वत सिद्धि, जैन धर्मोद्धारमा शूर सूरिवरा सुलतान छे, चतुर्विध सुसङ्घ प्रणेता सूरिवरा भगवान् छे.
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