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४ उपाध्यायस्तुतिः
॥ छप्पय छंद ॥
उपाध्याय गुणखाण ज्ञानना दरिया भाख्या, भणे भणावे सूत्र सत्य जे करता व्याख्या, पर द्रव्यादिक जाण सदा संयमने पाळे, शिष्यादिक परिवार धर्मना पन्थे वाळे, उपाध्याय भगवाननुं बहु, मान करो जय जयकरा, गच्छमां युवराजसमा ते, भव्य वृन्द अति सुखकरा. १ जैन धर्ममां धीर वीर संयमने साधे, पञ्चाचार धुरीण तत्त्वने जे आराधे, भव्य चतुर्विधसंघ सर्वने शिक्षा आपे, समजावीने बालसाधुने संयम थापे, उपाध्याय पदने नमो भवि वन्दन वार हजार छे, संप्रति वाचक मुनिने नमतां सेवतां भव पार छे
५ साधुपदस्तुतिः
धन्य धन्य दीवस ने धन्य घडी छे आज-ए राग.
संयम खप करता मुनिवर वन्दो भावे, संयत सेवाथी निर्मल संयम पावे, सरसवने मेरु अन्तर श्रावक साधु, मङ्गलकारी सुनिवर पढ़ने आराधु, धन्य धन्य दीवस ने धन्य घडी ते लेखो, जब मुनिवरदर्शन पुण्योदयथी पेखो,
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