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सापेक्षा आत्ममां, समज्याथी सुख दाव. अखण्ड निर्मल सत्य तुं, परम महोदय गेह, अन्तर्दृष्टि देखजे, वसियों आ देह. ज्योतिः झळहळती सदा, चेतननी सुखकार, शक्ति अनंति सिद्धसम, ध्यातां भवनो पार. परपुद्गलथी भिन्न तुं, घर त्हारो विश्वास, त्रिभुवनपतितुं देहमां, समजे तो मुखवास. ज्ञाता ज्ञेय अनन्तनो, जाग जाग मन चेत. जाग्रत था नुं आतमा, काळ झपाटा देत. सहु मंगलनुं स्थान तुं, सिद्ध बुद्ध परमेश, बुद्धिसागर ध्यानथी, पामो निर्भयदेश.
ध्यानोद्वार.
भुजंगी छन्द. करहुं कहा प्रेम तो कोण साथै, रु हुं कहो भारने कोण माथे; नथी कोइ मारु हवे केम हारु, हवे चेतने ब्रह्मने ना विसारु. खरामा खरा तवने आज जाएयुं, खरामा खरा सुखने आज माण्यं; चिदानन्दनं ध्यानथी आज ध्यायो, खरा सुखने मी आज पायो. टळी बाहामां सुखनी आज आशा, महा मोहना बाह्यना ए तमासा; अहो आज हंतो बन्यो भोगी,
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