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राग दोषथी कर्मग्रहीने, भ्रमण करे भवमां नादान; रत्नत्रयीनी प्राप्ति विण आ, जाणो फोगट मनु अवतार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनंत सुख पामो नरनार. ॥२॥ दर्शन नाण अने वळी चरणे, पामो साचो मोक्ष सुपन्थ, तत्त्वार्थमांहि साचुं भाख्यु, साख पूरे छे बहुला ग्रन्थ; रत्नत्रयी मळतां छे मुक्ति-एक एकथी कदी न धार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त मुख पामो नरनार. ॥ ३ ॥ पिण्डस्थादिक चार भेदथी, ध्यायो चेतन सुख भरपुर, अप्पा सो परमप्या परगट, चेतनथी मुक्ति नहीं दूर; तिरोभाव चेतन गुण सत्ता, आविर्भावे कृत्य विचार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त मुख पामो नरनार. ॥४॥ अशुद्ध भावे पुद्गल कर्ता, हर्ता शुद्ध स्वभावे भव्य, अन्तरना उपयोगे रहेवू, भाव धर्मन ए कर्तव्य; . शुद्ध स्वभावे शक्ति प्रगटे, कर्म मर्मनो नासे भार, स्थिरोपयोगे चेतन थ्यावो, अनन्तमुख पामो नरनार. ॥५॥ भासे ज्ञेयस्वरुपे मुख पण, ज्ञाने ज्ञाता चेतनराय; उपशम क्षयोपशम ने क्षायिक, सत्यधर्म चेतन कहेवाय; सुखनी भारा जग जयकारा, प्रगटे चेतनमां जयकार, स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त सुख पामो नरनार. ॥६॥ धर्म ध्यानना पाया चारे, भावो भक्तिथी सुखकार; चार भावना मैत्री आदिक, ध्यातां नासे मिथ्याभार, स्थित्युत्पत्ति व्ययनो योगी, अशुद्ध परिणातने हरनार; स्थिरोपयोगे चेतन ध्यावो, अनन्त सुख पामो नरनार. ॥७॥ स्मरजो श्वासोश्वासे चेतन, केवलनाणी सुखनी खाण; तप जप संयम चेतन हेते, करशो पामी जिनवर आण,
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